मंदिर जाकर भूल गए ये काम तो नहीं धूलेंगे पाप


हिंदू धर्म में मंदिर जाने और पूजा करने के बाद भगवान की परिक्रमा करने की विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि अगर किसी ने परिक्रमा नहीं की तो उसकी पूरा नहीं हुई। परिक्रमा करना किसी भी देवी-देवता की पूजा का महत्वपूर्ण अंग है। माना जाता है कि परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है साथ ही भविष्य में आगे बढ़ने का रास्ता भी बनता है। जानते हैं परिक्रमा से जुड़ी कुछ खास बातें।

परिक्रमा करते समय ध्यान रखें ये बातें

भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज करनी चाहिए। जिस दिशा में घड़ी के कांटे घूमते हैं, उसी प्रकार मंदिर में परिक्रमा करनी चाहिए।

मंदिर में स्थापित मूर्तियों सकारात्मक ऊर्जा होती है, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जो कि अशुभ है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचा सकती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इसी वजह से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।

परिक्रमा करते समय इस मंत्र का जाप करें

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

इस मंत्र का अर्थ यह है कि हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए काम और पूर्वजन्मों के भी किए गए सारे पाप परिक्रमा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमपिता परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।

किस देवता की कितनी परिक्रमा करें

सूर्य देव की सात, श्री विष्णु की पांच, श्रीगणेश की चार, श्री दुर्गा की एक, शिव जी की आधी परिक्रमा करें। जो कोई भी शिवलिंग की जल की निकासी यानि कि निर्मली को लांघेगा वह ‘पापी’ कहलाएगा और उसके भीतर की शक्ति छीन ली जाती है। यदि किसी मंदिर में शिवलिंग की निर्मली दिखाई नहीं दे रही है यानि कि उसे जमीन के नीच बनाया गया है तो चारों ओर परिक्रमा की जा सकती है अन्यथा निर्मली तक परिक्रमा करनी चाहिए, यानि की आधी परिक्रमा।