रक्षा, विदेश और वित्त मंत्री- तीनों के लिए चीन परेशानी; गृह मंत्री का सबसे पहले जम्मू-कश्मीर पर ध्यान


सरकार के चार सबसे अहम विभाग हैं- गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालय। अब मोदी सरकार में जिन्हें इनकी जिम्मेदारी मिली है, उनकी और उन्हें मिलने वाली चुनौतियों की चर्चा हो रही है। गृह मंत्री अमित शाह को गुजरात में गृह मंत्रालय संभालने का अनुभव है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नई तरह की चुनौतियां हैं।

शाह अपनी आक्रामक कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। उम्मीद की जा रही है कि अगले 100 दिनों में वे कुछ बड़े फैसले ले सकते हैं। पिछली सरकार में गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह को अब रक्षा मंत्रालय मिला है। रक्षा विशेषज्ञ सैयद अता हसनैन कहते हैं कि बतौर गृह मंत्री राजनाथ ने काफी अच्छा काम किया। इसलिए सेना से जुड़े लोगों को उनसे काफी उम्मीदें हैं।

विदेश सचिव रह चुके एस. जयशंकर विदेश मंत्री के पद के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति माने जा रहे हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी से तब से करीब हैं जब वे 2012 में चीन यात्रा पर मोदी के साथ गए थे। जयशंकर को अपनी काबिलियत साबित करना चुनौतीपूर्ण होगा। सबसे जल्दी और बड़ी चुनौती का सामना वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आने वाली है। एक महीने से भी कम समय में उन्हें आम बजट पेश करना है। वे भले ही कॉर्पोरेट मामले से जुड़ा मंत्रालय संभाल चुकी हों, लेकिन वित्त का अनुभव उनके लिए नया है।

चुनौतियों की बात की जाए तो गृह, वित्त और विदेश मंत्रालयों के लिए चीन एक साझा चुनौती बन गया है। जबकि गृह मंत्रालय के लिए जम्मू-कश्मीर परेशानी का सबब बन सकता है। पढ़िए विभिन्न विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित चारों मंत्रियों के सामने आने वाली चुनौतियां का विश्लेषण।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह: देश में ही हथियार बनाना प्राथमिकता
चुनौतियां: रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों में ढांचागत बदलाव लाना राजनाथ सिंह की पहली चुनौती होगी। रक्षा मंत्रालय खर्च और नए उपकरणों की खरीद से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। जिसका असर सशस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमता पर पड़ा रहा है। कई खरीद लंबे समय से अटकी पड़ी हैं। जैसे वायु सेना को कम से कम 100 लड़ाकू विमानों की जरूरत है। नौसेना को पनडुब्बियों की जरूरत है। दूसरी चुनौती डिफेंस प्रोडक्शन को बढ़ावा देना है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाना है। चीन से सटी सीमा की सुरक्षा बढ़ाना भी एक चुनौती है।

क्या हो सकता है : राजनाथ सिंह रक्षा बजट को दो फीसदी बढ़वाने की कोशिश कर सकते हैं। अभी सरकार अपने खर्चों में 16 फीसदी खर्च रक्षा के लिए करती है। जहां तक सुरक्षा रणनीति का सवाल है, तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पहले ही इस पर काम कर रहे हैं। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति भी प्रस्तावित है। सीडीएस सरकार के लिए रक्षा मामलों में बतौर सलाहकार काम कर सकेंगे। इसका प्रस्ताव लगभग एक साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा जा चुका है।

रक्षा विशेषज्ञ सैयद अता हसनैन कहते हैं कि राजनाथ सिंह पहले कैबिनेट रक्षा समिति के सदस्य रह चुके हैं, इसलिए वे इस प्रस्ताव के बारे में जानते हैं और इस पर काम कर सकते हैं। भारत-चीन सीमा पर 2006 में 73 सड़कें बनाने को मंजूरी मिली थी। अभी 27 सड़के पूरी हुई हैं, बाकी की 2022 तक पूरी करने का लक्ष्य है। ये सड़कें सेना और उपकरणों को तेजी से लाने, ले जाने के लिए जरूरी हैं। हसनैन कहते हैं कि हथियारों के आयात को कम करने के लिए राजनाथ सिंह को देश में ही निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों को बढ़ावा दिया जा सकता है।

गृह मंत्री अमित शाह: जम्मू और कश्मीर में चुनाव चुनौती
चुनौतियां: गृहमंत्री अमित शाह के सामने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव, नागरिक संशोधन विधेयक, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) और आतंकी संगठन आईएसआईएस से मुकाबले की तैयारी जैसी चुनौतियां होंगी। आतंकवाद प्रभावित राज्य जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव जल्द कराने की जरूरत है। इसके अलावा यहां आर्टिकल 370 और 35ए हटाने जैसे मुद्दे भी हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भाजपा विधायक की हत्या के बाद से मध्य भारत में माओवादी और भी अधिक चिंता का विषय बन गए हैं। राम मंदिर का मुद्दा भी होगा।

क्या हो सकता है: अमित शाह जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव कराने की कोशिश कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विराग गुप्ता कहते हैं कि धारा 370 और 35ए हटाना मुश्किल लग रहा है क्योंकि विधानसभा में यदि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो इन्हें खत्म करने पर कैसे कार्रवाई होगी? राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद के माध्यम से भी इसे अंजाम दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए विधानसभा चुनावों के पहले ही निर्णय लेना होगा। एनआरसी के मुद्दे पर विराग कहते हैं कि सहयोगी दल असमगण परिषद् की असहमति के बाद भाजपा ने नागरिकता कानून से कदम पीछे कर लिए थे।

रोहिंग्या घुसपैठियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई स्टे नहीं दिया, इसके बावजूद उन्हें देश से बाहर निकालने की ठोस प्रक्रिया शुरु नहीं हुई है। नागरिकता सुधार बिल इस बार भाजपा सरकार पास करवा सकती है। श्रीलंका में हुए हमले के बाद से आईएसआईएस भी चिंता का विषय बन गया है। जहां तक सवाल राम मंदिर का है तो विराग के अनुसार न्यायिक प्रक्रिया में विलंब होने पर केंद्र सरकार अध्यादेश या संसद में कानून के जरिए राम मंदिर के लिए भूमि का आवंटन कर सकती है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर: चीन पर लगाम, तेल के लिए अमेरिका-ईरान के बीच सामंजस्य बनाना होगा
चुनौतियां: विदेश मंत्री एस जयशंकर के लिए सबसे बड़ी चुनौती चीन बनेगा। चीन हमसे अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और टेक्नोलॉजी में आगे होता जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की नजदीकी भी समस्या बनी रहेगी। यानी चीन के प्रभाव को कम करना पहली चुनौती होगी। दूसरी चुनौती अमेरिका और ईरान के साथ सामंजस्य बनाना होगी। भले ही भारत अमेरिका का करीबी मना जाता हो लेकिन व्यापार से जुड़े विवाद परेशानी बन सकते हैं। तीसरी चुनौती अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों की रक्षा करना होगा। भारत जी-20, ब्रिक्स आदि में बड़ी और नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहेगा।

क्या हो सकता है: चीन का सामना करने के लिए जरूरी है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए तो लड़े लेकिन साथ ही साझा हितों को भी बढ़ावा देता रहे। चीन से मुकाबले के लिए भारत को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एसिया के देशों से रिश्ते मजबूत करने होंगे। वहीं तेल-गैस यानी ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से खाड़ी देशों के साथ संबंधों पर ध्यान देना भी प्राथमिकता होगी।

भारतीय उपमहाद्वीप में सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए पड़ोसी देश महत्वपूर्ण हैं। जयशंकर अमेरिका में भारत के एम्बेसडर रह चुके हैं और उन्होंने अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील और देवयानी खोबरागड़े जैसे जटिल मुद्दों को सुलझाया है। इसलिए वे अमेरिका के साथ वार्ता के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति माने जाते हैं। इसके अलावा यूएन सिक्योरिटी काउंसिल और एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) की सदस्यता भी नए विदेश मंत्री के लिए जरूरी मुद्दा हो सकता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण: गिरती जीडीपी सबसे बड़ी चिंता, हर साल चाहिए 81 लाख नई नौकरियां
चुनौतियां: निर्मला सीतारमन ने वित्त मंत्रालय संभाला ही था कि जीडीपी के आंकड़े आ गए, जो आने वाले समय कि चुनौतियां बता गए। अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच भारत की अर्थव्यवय्था 6.8% के दर से बढ़ी पर जनवरी से मार्च 2019 तिमाही में बढ़त मात्र 5.8% थी। यह बढ़त पिछले पांच वर्षों में सबसे कम रही। देश में पिछले 45 सालों में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत में हर साल 81 लाख नई नौकरियों की जरूरत है।

बैंक बैड लोन का सामना कर रहे हैं। औद्योगिक उत्पादन कम हो रहा है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक दिसंबर 2018 तिमाही में 3.69% रह गया। निजी निवेश बढ़ाना भी चुनौती है। 2018-19 वित्त वर्ष में पिछले 14 सालों में सबसे कम निवेश प्रस्ताव आए हैं। चीनी माल की डंपिंग से उद्योंगों को नुकसान हो रहा है। बैंकिंग सेक्टर लगातार संकटों से गुजर रहा है।

क्या हो सकता है: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण करने की दिशा में काम कर सकती हैं। आरबीआई ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए बैकअप फंड बनाकर उन्हें डूबने से बचाना होगा। उत्पादन और मांग बढ़ाने के लिए उपभोक्ता पर टैक्स का बोझ कम करना होगा। जीएसटी को और सरल बनाया जा सकता है और इसकी 28% दर को खत्म करने का दबाव है। बैंक सुधारों के लिए सरकार ने कमेटी बनाई थी। लेकिन यह धीमी गति से काम कर रही है। वित्तीय घाटे पर लगाम लगाने की कोशिश होगी। चीन के साथ सख्ती बरतने की भी जरूरत है।