

स्वर्ग की अप्सराएं बड़ी ही सुन्दर होती है। एक समय की बात है की इन स्वर्ग की अप्सराओं को अपने सुन्दरता पर इतना घमण्ड़ हो गया था कि वो देवता को कुछ नही समझती थी। यह बात जब ब्रह्मा जी को पता चली तो उन्होने एक ऐसी कन्या का निर्माण किया। जो अप्सराओं से ही नही बल्की पुरे संसार मे सारे प्राणियों से ज्यादा सुंदर थी, उस कन्या के खूबसूरती के कारण ही उसका नाम अहिल्या पड़ा। अहिल्या के खूबसूरती को देखकर स्वर्ग की सभी अप्सराओं का घमण्ड़ चूर हो गया था। वह अहिल्या अभी छोटी कन्या ही थी। लेकिन वह इतनी खूबसूरत थी कि देवराज इन्द्र उसे भविष्य में अपने पत्नि के रुप में देखने लगे थे।
लेकिन परमपिता बह्मा ने उस कन्या अहिल्या को उस समय के सबसे तेजस्वी महर्षि गौतम के पास अपनी धरोहर के रुप में रख छोडा था। अहिल्या गौतम के आश्रम में रहकर समय आने पर पूर्ण रुप से व्यस्क हुई। तब सभी बाहुबली देवता,राक्षस, नांग और मनुष्य उसे अपनी पत्नि बनाने का सपना देखने लगे थे। लेकिन इन सबके अन्दर साहस तपस्वी गौतम के आश्रम मे जाने का नही होता था। क्योंकि उन सभी का बाहुबल महर्षि गौतम के तप के सामने कुछ भी नही था। जब अहिल्या युवा हुई तो महर्षि गौतम ने परमपिता बह्मा के उस धरोहर के उन्हे वापिस लौटा दिया। अहिल्या के वापिस आ जाने के बाद बह्मा जी यह सोचने लगे, कि मैं अहिल्या का विवाह किसके साथ करु तो उन्हे इस सारे जगत में कोई देवता,नाग, मनुष्य अहिल्या के लायक नही दिखाई दिया। तब बह्मा जी को महर्षि गौतम याद आये।
क्योंकि उनके मन में अहिल्या के साथ रहकर भी कोई विकार नही आया था। इसलिए बह्मा जी ने गौतम ऋषि के इन्द्रिय सयंम को देखते हुए उन्हे ही संसार का सबसे श्रेष्ठ पुरुष माना था। और उनको अपने पास बुलाया और फिर अहिल्या को इस बार उन्हे पत्नि के रुप में सौप दिया। बह्मा जी के इस निर्णय से देवराज इन्द्र बहुत ही दुखित हुए थे। क्योंकि वो अहिल्या को अपनी पत्नि बनाने का विचार कर चुके थे। इसलिए उन्होने एक दिन छल से जब गौतम ऋषि अपने आश्रम में नही थे, उस समय गौतम ऋषि का रुप बनाकर उनके आश्रम में अहिल्या के पास पहुंच गये। और अहिल्या के साथ यौनाचार करने लगे, इन्द्र जब यह कुकर्म कर के वापस स्वर्ग जा रहे थे। तभी गौतम ऋषि अपने आश्रम में वापस आ गये। उन्हे देख देवराज इन्द्र वहां से भाग खड़े हुए। महर्षि गौतम ने अपनी ही रुप में एक प्राणी को भागते हुए देखा तो अपने तपो बल से इन्द्र के सारे करतूत का पता लगा लिया। उस करतूत पर महर्षि गौतम को बड़ा क्रोध आया तब उन्होने इन्द्र को श्राप दिया था कि देवराज इन्द्र के इस कारतूत के कारण मनुष्य रुप में ऐसा दुराचार होने लगेगा। क्योंकि इन्द्र ने इस दुराचार का सुत्रपात किया है। इस कारण जो भी मनुष्य ऐसा पाप करेगा उसका आधे पाप का भागीदार देवराज इन्द्र स्वंम होंगे।