मलमास में गोवर्धन परिक्रमा से पूरी होती हैं मनोकामनाएं


हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मलमास के महीने में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध माना जाता है वहीं कान्हा की ब्रजभूमि में वास कर गोवर्धन की परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह महीना मनोरथ पूर्ति का कारक माना जाता है। मथुरा में 16 मई से शुरू हो रहे अधिक मास अर्थात मलमास के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इस माह में ब्रजभूमि में लाखों तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है। द्वारकाधीश मंदिर के ज्योतिषाचार्य अजय कुमार तैलंग के अनुसार बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों में मलमास में वर्ष भर के त्योहार मनोरथ के रूप में मनाए जाते हैं, इस माह में मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं।

पुरूषोत्तम मास के बारे में ब्रज के मशहूर भागवताचार्य विभू महराज ने बताया कि जिस माह में सूर्य की संक्रांति नही होती उसे मलमास या अधिक मास अथवा पुरूषोत्तम मास कहते हैं। इस मास में शुभ कार्य करने पर निषेध है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गिर्राज गोवर्धन की पूजा की थी और द्वापर में गोवर्धन पूजा के समय एक स्वरूप से गिर्राज गोवर्धन में प्रवेश कर गए थे इसके कारण गोवर्धन को साक्षात श्रीकृष्ण भी माना जाता है। इसकी परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है। वैसे भी पुरूषोत्तम मास के स्वामी स्वयं पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण है।

अधिक मास के संबंध में शास्त्रों का जिक्र करते हुए विभू महराज ने बताया कि अपनी उपेक्षा से दु:खी मलमास जब भगवान विष्णु के पास पहुंचा तो वे उसे भगवान श्रीकृष्ण के पास ले गए और उनसे उसे स्वीकार करने का अनुरोध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे स्वीकार करते हुए कहा कि उनके सभी गुण, कीर्ति, अनुभव, छहों ऐश्वर्य, पराक्रम एवं भक्तेां को वरदान देने की शक्ति इस मास में भी आ जाएगी और यह पुरूषोत्तम मास के नाम से मशहूर होगा। ठाकुर ने कहा कि जो भी भक्तिपूर्वक इस मास में पूजन-अर्चन करेगा वह सम्पत्ति, पुत्र, पौत्र आदि का सुख भोगता हुआ गोलोक धाम को प्राप्त करेगा।

उन्होंने बताया कि मलमास में गोवर्धन की परिक्रमा देने में सबसे अधिक संख्या ठढ़ेसुरी परिक्रमा करने वालों यानी पैदल परिक्रमा करने वालों की होती है जो पतित पावनी मानसी गंगा के पावन जल से स्नान कर गिरि गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं अथवा परिक्रमा पूरी करने के बाद मानसी गंगा में स्नान करते हैं। इसके अलावा इस मास में दण्डौती, लोटन, दूध की धार, पारिवारिक एवं सामूहिक दण्डौती परिक्रमा भी की जाती है।

यह मेला एक महीने तक चलता है इसलिए इतने लम्बे समय तक मेले की व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन के लिए भी चुनौती होता है। कुल मिलाकर एक माह तक गिर्राज तलहटी में परिक्रमार्थियों की अनवरत ऐसी माला बन जाती है जो भावात्मक एकता का नमूना बन जाती है। जलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र के अनुसार मेले की व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। अतिक्रमण हटाकर जहां गोवर्धन, मथुरा एवं वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग को चौड़ा किया गया है। इस माह में सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के गोवर्धन की परिक्रमा करने की संभावना है इसलिए गोवर्धन में विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं। गर्मी में रात में अधिक तीर्थयात्री परिक्रमा करते है। इसके लिए 23 किलोमीटर लम्बे परिक्रमा मार्ग पर अनवरत दिन जैसा प्रकाश करने की व्यवस्था की गई है।

प्रतिकूल मौसम की संभावना को ध्यान में रखकर विकल्प के रूप में पूरे परिक्रमा मार्ग पर दूधिया प्रकाश बनाए रखने के लिए सोलर लाइट जलने की व्यवस्था की गई हैं। पूरे परिक्रमा मार्ग पर पेयजल की समुचित व्यवस्था की गई है। परिक्रमा मार्ग पर जगह-जगह चिकित्सा शिविर भी लगाए जा रहे हैं। उन्होने बताया कि परिक्रमार्थी गिर्राज जी का अभिषेमक शुद्ध दूध से कर सकें इसके लिए गोवर्धन के दानघाटी मंदिर, मुकुट मुखारबिन्द मंदिर मानसी गंगा, मुखारबिन्द मंदिर जतीपुरा पर शुद्ध दूध की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा रहा है। शुद्ध खाद्य पदार्थ की बिक्री को सुनिश्चित करने के लिए खाद्य विभाग से सक्रिय रहने को कहा गया है। परिक्रमा मार्ग पर तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल लगाया जा रहा है।

धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से परिक्रमा मार्ग पर शीतल पेयजल की व्यवस्था की गई है। प्रारंभ में विभिन्न मार्गों से गोवर्धन पहुंचने के लिए 50 बसें चलाई जाएंगी । बाद में तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए इन्हे बढ़ाया जाएगा। उन्होंने बताया कि वृन्दावन और मथुरा की परिक्रमा के मार्ग को भी ठीक कराया जा रहा है क्योंकि बहुत से लोग इसमें भी परिक्रमा करते हैं।