

हिंदू धर्म में शिवलिंग पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. लिंग को भगवान शिव के रूप में देखा जाता है और उसी की पूजा-अर्चना की जाती है. लेकिन अक्सर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और क्यों हुई. तो हम आपको बता रहे हैं कि शिवलिंग कैसे उत्पन्न हुआ.
शिवलिंग शिव( शंकर ) भगवान का प्रतीक है. उनके निश्छल ज्ञान और तेज़ का यह प्रतिनिधित्व करता है. ‘शिव’ का अर्थ है – ‘कल्याणकारी’. ‘लिंग’ का अर्थ है – ‘सृजन’. शंकर के शिवलिंग की जल, दूध, बेलपत्र से पूजा की जाती है. सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिह्न के रूप में लिंग की पूजा होती है.
स्कंद पुराण में लिंग का अर्थ लय लगाया गया है. लय ( प्रलय) के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में लिंग से सब प्रकट होता है. लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं.
वेदी महादेवी और लिंग महादेव हैं. अकेले लिंग की पूजा से सभी की पूजा हो जाती है. पहले के समय में अनेक देशों में शिवलिंग की उपासना प्रचलित थी. जल का अर्थ है प्राण. शिवलिंग पर जल चढ़ाने का अर्थ है योगिराज ( परम तत्व) में प्राण विसर्जन करना.
स्फटिक लिंग सर्वकामप्रद है. पारद (पारा) लिंग से धन, ज्ञान, ऐश्वर्य और सिद्धि प्राप्त करता है.
आदिकाल में ब्रह्मा ने सबसे पहले महादेव जी से संपूर्ण भूतों की सृष्टि करने के लिए कहा. स्वीकृति देकर शिव भूतगणों के नाना दोषों को देख जल में मग्न हो गये तथा चिरकाल तक तप करते रहे. ब्रह्मा ने बहुत प्रतीक्षा के उपरांत भी उन्हें जल में ही पाया तथा सृष्टि का विकास नहीं देखा तो मानसिक बल से दूसरे भूतस्त्रष्टा को उत्पन्न किया.
उस विराट पुरुष ने कहा- ‘यदि मुझसे ज्येष्ठ कोई नहीं हो तो मैं सृष्टि का निर्माण करूंगा.’ ब्रह्मा ने यह बताकर कि उस ‘विराट पुरुष’ से ज्येष्ठ मात्र शिव हैं, वे जल में ही डूबे रहते हैं, अत: उससे सृष्टि उत्पन्न करने का आग्रह किया है. उसने चार प्रकार के प्राणियों का विस्तार किया.
सृष्टि होते ही प्रजा भूख से पीड़ित हो प्रजापति को ही खाने की इच्छा से दौड़ी. तब आत्मरक्षा के निमित्त प्रजापति ने ब्रह्मा से प्रजा की आजीविका निर्माण का आग्रह किया. ब्रह्मा ने अन्न, औषधि, हिंसक पशु के लिए दुर्बल जंगल-प्राणियों आदि के आहार की व्यवस्था की.
उसके बाद प्राणी समाज का विस्तार होता गया. शिव तपस्या समाप्त कर जल से निकले तो विविध प्राणियों को निर्मित देख क्रुद्ध हो उठे तथा उन्होंने अपना लिंग काटकर फेंक दिया जो कि भूमि पर जैसा पड़ा था, वैसा ही प्रतिष्ठित हो गया.
सती की मृत्यु के उपरांत उनके वियोग में शिव नग्न रूप में भटकने लगे. वन में घूमते शिव को देख मुनिपत्नियां आसक्त होकर उनसे चिपट गयीं. यह देखकर मुनिगण रुष्ट हो उठे. उनके शाप से शिव का लिंग पृथ्वी पर गिर पड़ा और पाताल पहुंच गया.
शिव क्रोधवश तरह-तरह की लीला करने लगे. पृथ्वी पर प्रलय के चिह्न दिखायी दिए. देवताओं ने शिव से प्रार्थना की कि वे लिंग धारण करें. वे उसकी पूजा का आदेश देकर अंतर्धान हो गये. कालांतर में प्रसन्न होकर उन्होंने लिंग धारण कर लिया तथा वहां पर प्रतिमा बनाकर पूजा करने का आदेश दिया.