

हिंदू धर्म में जनेऊ पहनना एक पुरानी परम्परा है, जो हजारो वर्षो से चली आ रही है। हिंदू धर्म में जनेऊ पहने वाले को उसके नियमों का पालन करना चाहिए। ब्राह्मण वर्ग ही नहीं समाज का कोई भी वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं।
जिनका अर्थ है कि यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। यह सत्व, रज और तम का प्रतीक होते हैं। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक हैं। यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। जनेऊ को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा के लिए धारण कर सकते है। अपवित्र होने पर होने पर जनेऊ बदलना पड़ता है। इस मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात।
आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।।
इसके बाद गायत्री मन्त्र का कम से कम 11 बार उच्चारण करते हुए जनेऊ धारण करें। हिन्दू धर्म में महिलाये भी जनेऊ धारण कर सकती है, लेकिन जनेऊ धारण करने पर अनेक कठिन नियमो का पालन करना पड़ता है।