

ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है। आज के दिन वट के पेड की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वट सावित्री के व्रत से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ पत्नि अपने पति पर आने वाले हर संकट से उसे बचा लेती है। पुराणों के अनुसार वट सावित्री के व्रत में पूजा और पूजन सामग्री का विशेष महत्व रहता है। पूजा सामग्री के बगैर व्रत अधूरा माना जाता है।
वट सावित्री के व्रत में प्रयोग होने वाली पूजन सामग्री
इस व्रत में सत्यवान और सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, कलेवा या लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल व फल, वस्त्र 1.25 मीटर, सिंदूर, जल, रोली व दक्षिणा।
पूजा विधि
वट सावित्री की पूजा बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है। आज विवाहित स्त्री सजकर एक थाली में गुड़, भीगे हुए चने, मिठाई, कुमकुम, रोली, मोली, फल, पान का पत्ता, धुप, घी का दीया, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर बरगद के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं फिर प्रसाद चढाकर धुप व दीया जला कर पूजा करें। पंखे से वट वृक्ष को हवा करें। फिर बरगद के पेड़ के चारो ओर मौली को 7 बार बांधे उसमें गांठ न लगाए। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें।