“युवा नाट्य समारोह” के दूसरे  दिन नाटक “अजन्मों के नगर में गुड्डी ” का हुवा मंचन


बीकानेरl राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर,  नगर विकास न्यास बीकानेर एवं संकल्प नाट्य समिति बीकानेर के सयुक्त तत्वाधान में आयोजित “युवा नाट्य समारोह” के दूसरे  दिन नाटक “अजन्मों के नगर में गुड्डी ” का मंचन हुवा l  नाटक का कथासार इस प्रकार था –

नाटक का कथासार

 नाटक “अजन्मों के नगर में गुड्डी ” में दो कथाओं का समावेश है, नाटक दो नगरों की कहानी को दिखाया गया । सभी कलाकारों के गणेश वंदन के बाद दो सूत्रधार शिक्षा और बचपन मंच पर आते हैं और दर्शकों से वार्तालाप करते हुए आज की परिस्थितियों पर बात करते हैं, वो बताते हैं कि  यद्दपि आज भारत में लड़कियां पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ रही हैं किन्तु अनेक जगहों पर आज भी कन्याओं को दोयम दर्जे पर रखा जाता है, उन्हें पढ़ाया नहीं जाता और सबसे दुखद ये है कि आज भी कन्याओं को पैदा होने से पहले गर्भ में ही मार दिया जाता है अथवा पैदा होते ही गला घोंट दिया जाता है |  बचपन और शिक्षा दर्शकों को बताते हैं की अगर परिवार और समाज के न चाहते हुए किसी तरह लड़की पैदा भी हो गयी तो भी उसे वो अधिकार नहीं मिलते जो उसे मिलने चाहिए उसे पढ़ाया नहीं जाता, घर का काम कराया जाता है और फिर दर्शक गुड्डी के गाँव में पहुँच जाते हैं और गुड्डी की कहानी की शुरू होती है | कहानी में दिखाया जाता है की एक लड़की ‘गुड्डी’ जो पढना चाहती है, आगे बढ़ना चाहती है उसकी माँ समाज की पारंपरिक  रूढ़ियों  बंधी उसे पढ़ने नहीं देती उसकी आवाज़ को ये कह कर बंद कर दिया जाता है कि लड़कियों को पढ़ाई करके कौनसा अफसर या कलेक्टर बनना है, लड़कियों का काम तो सिर्फ बच्चे पैदा करना और घर में चूल्हा फूंकना होता है | किन्तु गाँव के मास्टर जी गुड्डी की प्रतिभा से प्रभावित होकर उसके माँ बाप को समझाते हैं और फिर गुड्डी के माँ-बाप गुड्डी को पढ़ाने के लिए राज़ी होते हैं, और फिर एक दिन गुड्डी अपने ही गाँव में कलक्टर बन के आती है और गुड्डी की माँ माँ अपनी गुड्डी पे नाज करती लोगो से कहती है कि अपनी गुड्डियों को खूब पढाये  ।

सूत्रधार का वापिस प्रवेश होता है और वो दर्शकों को बताते हैं इस गुड्डी को तो इसकी मंजिल मिल गयी पर अजन्मों के नगर में ऐसे कई गुड्डे और गुड्डी हैं जो अपने सभी अधिकारों से वंचित कर दिए गए हैं | फिर सूत्रधार वापस एक नगर में ले जाते हैं जहाँ वो बच्चे रहते हैं जो जीवित लोगों की दुनिया में जन्म ही न ले l

पाए जिन्हें गर्भ में ही मार दिया गया वहाँ दिखाया जाता है उस नगर के वो सभी बच्चे कितने अभागे और अधूरे हैं जो पैदा होने से पहले ही मार दिए गए, और वो माँ-बाप कितने क्रूर और निर्दयी हैं जिन्होंने अपने अंश को जिन्दगी देने का अधिकार छीन लिया | । माँ बाप की व्यस्तता  के चलते अबॉर्शन या जवानी की गलतियों के कारन अबॉर्शन अथवा लड़कों के चाह में लड़कियों को कोख माँ मार जैसे अनेक कारणों की  वजह से अजन्मों के नगर कि संख्या बढती जा रही है | कहानी के अंत में वो सभी बच्चे दर्शकों से सवाल पूछते हैं कि चाहे नाजायज़ कारण रहे हो या माँ बाप की व्यस्तताएं, खोखली मानसिकता रही हो या परिवार का दवाब मगर उन बच्चे-बच्चियों का क्या कसूर है जिन्हें गर्भ में ही मार दिया गया | सभी अजन्मे बच्चे अजन्मे समाज के लोगों से अजन्मों के नगर की जन संख्या ना बढ़ाने की गुहार करते हुए ये कहते है कि उन्हें भी जन्म लेने का हक है, उन्हें जन्म दिया जाये और उनको वो सब अधिकार दिए जाएँ जिसके वो अधिकारी है |

नाटक की इन दोनों कहानियों में बालिकाओं के जीवन का जन्म लेने के पहले से लेकर बाद तक का बड़ा ही मार्मिक चित्रण पेश किया गया है एवं समाज से अपील की गयी है की अपनी अजन्मी बच्चे बच्चियों को जन्म दो एवं उन्हें आगे बढ़ाओ, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ |

नाटक के पात्र

प्रसिद्द लेखक तपन भट्ट द्वारा लिखे गए इस नाटक में रिमझिम भट्ट , प्रियंका सोनी, अनुज, झिलमिल भट्ट, हर्ष, सरगम, अभिनय, यश पारीक , पाखी, शिवांश पारीक एवं स्वयं निर्देशक संवाद भट्ट, ने भाग  लिया । नाटक में प्रकाश परिकल्पना शहजोर अली की थी | नाटक का संगीत एवं तकनीकी पक्ष डॉ सौरभ भट्ट ने संभाला, प्रस्तुति नियंत्रण विशाल भट्ट का था | वेशभूषा नम्रता भट्ट एवं रूप सज्जा विष्णु सैन की थी, तथा नाटक का निर्देशन युवा रंगकर्मी संवाद भट्ट ने किया |