आज से शुरू हुआ मलमास, जानें क्या है इसकी ख़ासियत


इस बार मलमास या अधिकमास 16 मई से 13 जून तक ज्येष्ठ माह में रहेगा. इसे ही पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. सालों बाद ज्येष्ठ मास में अधिकमास रहेगा. श्री शिव शक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर ने बताया कि इस मास में विवाह, नवीन गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदारी आदि शुभ नहीं होता है. साथ ही उन्होंने बताया कि अधिकमास के स्वामी श्रीहरि इसलिए बने क्योंकि अन्य देवताओं ने इसका स्वामी बनने से मना कर दिया. तभी यह पुरुषोत्तम मास हो गया.

इन दिनों में श्रीहरि की प्रसन्नता हेतु स्नान-दान व्रत अवश्य करना चाहिए. गंगा और अन्य पवित्र नदियों पर स्नान, व्रत, नारायण की पूजा सहित अन्न, वस्त्र, स्वर्ण-रजत, ताम्र आभूषण, पुस्तकों आदि का दान अक्षय पुण्य दिलवाता है. यह जरूर ध्यान रखें कि प्रथम पूज्य गणेश जी, शिव जी और अपने इष्टदेव- कुलदेवी, कुलदेवता आदि की पूजा भी इस दौरान जरूर करते रहें. जिन राशियों की शनि की साढे़साती (वृश्चिक, धनु और मकर) चल रही है तथा जिनकी शनि की ढैया (वृष और कन्या) चल रही है, उनको इस मास की पूजा जरूर करनी चाहिए. इस मास में गणेश जी, श्रीमद्भागवत गीता, रामचरितमानस, शिव कथा आदि पढ़ना और श्रवण करना शुभ माना जाता है. संभव हो तो अपने घर कथा करवायें.

मलमास में यह नहीं करें:

मलमास में कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों को निषेध माना गया है. जिसमें प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन, नव वधु प्रवेश, यज्ञोपवित संस्कार, नए वस्त्रों को धारण करना, नवीन वाहन खरीद, बच्चे का नामकरण संस्कार आदि कार्य नहीं करना चाहिए.

मलमास में क्या करें:

जिस दिन मलमास शुरू हो रहा हो उस दिन प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को पुष्प, चंदन-अक्षत मिश्रित जल से अघ्र्य देकर पूजन करना चाहिए. अधिक मास में शुद्ध घी के मालपुए बनाकर प्रतिदिन कांसी के बर्तन में रखकर फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं अपने सामथ्र्य के अनुसार दान करें. संपूर्ण मास व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि करें. जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं, उन्हें इस मास में किया जा सकता है. इस मास में मृत व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध किया जा सकता है. रोग आदि की निवृत्ति के लिए, रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं.

अधिकमास का पौराणिक आधार क्या है:

अधिक मास से जुड़ी पौराणिक कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है. पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा. लेकिन अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा. तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके. वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो.जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का. वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से. उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके.

इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया. समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया.