

वैसे तो शनिवार को शनिदेव की पूजा करने का विधान हे, परंतु इस शनिवार को शिव का प्रिय व्रत प्रदोष भी पड़ रहा है। ऐसे में यदि शनि की पूजा के साथ उनके आरध्य शिव की पूजा अर्चना हो और उसमें उनके विशेष मंत्रों का जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सर्वोत्तम लाभ की प्राप्ति होती है। इसलिए शनि की पूजा से पहले शिव जी की पूजा करें और उसमें उनके पांच विशिष्ठ मंत्रों का जाप कर शंकर और शनि दोनों का प्रसन्न कर आर्शिवाद लें।
इन मंत्रों का करें जाप
प्रदोष की पूजा के दौरान नीचे लिखे पांच शिव मंत्रों का श्रद्धा पूर्वक जाप करें।
1- हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
2- शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।
3- हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
4- शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।
5- ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
करें शिव कथा का पाठ
प्रत्येक महीने में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष यानी कि दोनों पक्षों के तेरहवें दिन अर्थात त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है। वहीं जब यह तिथि शनिवार के दिन पड़ती है तब इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। वह अपने भक्तों पर बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा इस व्रत को करने से संतान आदि की कामना पूरी होती है। वहीं इस व्रत से जुड़ी एक अनोखी पौराणिक कथा भी है।
ये है कथा
एक नगर में काफी धनवान नगर सेठ रहते थे, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। जिससे दुखी सेठ ने तीर्थयात्रा पर जाने का मन बनाया है। सब काम धंधा अपने नौकरों को सौंप कर वे पत्नी के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। तभी नगर के अंतिम छोर पर एक ध्यानमग्न बैठे साधु मिले, तब सेठ जी ने सोचा कि तीर्थ यात्रा से पहले अगर साधू से आशीर्वाद मिल जाए तो यात्रा सफल होगी और वे साधु के समीप आशीर्वाद की कामना से बैठ गए। साधना से उठने पर साधू ने सेठ और सेठानी को बैठे देखा तो मुस्करा कर बस इतना कहा कि मै तुम दोनों का दुख जानता हूं। तुम दोनों लोग शनि प्रदोष का व्रत करो तुम्हारी संतान की कामना पूरी होगी। इसके बाद सेठ सेठानी तीर्थयात्रा पर गए और वहां से लौटने के बाद उन लोगों ने शनि प्रदोष का व्रत किया। जिससे उनकी मनोकामना पूरी हुई। उनके घर से पुत्र ने जन्म लिया। अर्थात लोग जिस मनोकामना से इस व्रत को रखते हैं वह पूरी होती है।