उत्तर और दक्षिण कोरिया क्या-क्या हथकंडे अपनाते हैं एक-दूसरे पर ?


वैसे तो उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच हमेशा अनबन की ख़बरें आती हैं लेकिन फ़िलहाल दोनों देश पिछले दस साल में होने वाली अपनी पहली शिखरवार्ता की तैयारी कर रहे हैं. बरसों से चले आ रहे कड़वाहट भरे रिश्तों और आक्रामक बयानों के बाद होने जा रही इस बातचीत को दक्षिण कोरियाई नेताओं के बीच एक दुर्लभ और उम्मीद जगाने वाले मौक़े के तौर पर देखा जा रहा है. 1953 में कोरियाई जंग ख़त्म होने के बाद दोनों पड़ोसी देशों के बीच कोई शांति समझौता नहीं हुआ था इसलिए इनके बीच किसी तरह का औपचारिक रिश्ता नहीं रहा. 1990 में ‘सनशाइन पॉलिसी’ आई जिसने रिश्ते सुधारने की कोशिश की और इसके लिए दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति रहे किम डे-जंग को साल 2000 में शांति के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

कुछ ख़ास नहीं कर पाई सनशाइन पॉलिसी

हालांकि ‘सनशाइन पॉलिसी’ ज़्यादा वक़्त तक दोनों देशों के रिश्तों में गरमाहट क़ायम नहीं रख पाई क्योंकि उत्तर कोरिया ने अपनी परमाणु महत्वाकांक्षा का पीछा नहीं छोड़ा. दोनों पड़ोसियों के बीच नोंकझोंक चलती रही जिसे ‘छोटे-मोटे’ युद्ध के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि इनका मक़सद एक-दूसरे को बड़ा नुक़सान पहुंचाने के बजाय चेतावनी देना ज़्यादा रहा है. उत्तर और दक्षिण कोरिया तक़रीबन वैसी ही रणनीतियां एक-दूसरे पर आज़माते रहे हैं जैसी शीत युद्ध के दौरान सोवियत यूनियन और अमरीका एक-दूसरे पर आज़माते थे. विश्लेषक अंकित पांडा का कहना है कि ऐसा करके दो देश सेना को शामिल किए बग़ैर भी हमलावर रुख बनाए रख सकते हैं. अंकित ने बीबीसी को बताया, “दोनों देशों के बीच जो कुछ होता है वो हमें भले ही कोई बड़ी बात न लगे लेकिन असल में इनका एक सांकेतिक महत्व है. इतना ही नहीं, इसका असर भी पड़ता है.” पिछले कुछ सालों में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले के लिए कुछ ऐसी तरकीबों का इस्तेमाल किया है: