

दिन हो या रात, ऑफ़िस का डेस्कटॉप हो या हाथों में समाने वाला स्मार्टफ़ोन, फ़ेसबुक वो दुनिया है जो हमारी दुनिया का अब अहम हिस्सा है. घर-परिवार की तस्वीरें हों या फिर ऑफ़िस से जुड़ी कोई अच्छी-बुरी ख़बर, अब निजी ज़िंदगी की ख़बरें फ़ेसबुक पर ब्रेक होती हैं. इस ख़बर को पढ़ने वाले ज़्यादातर लोग ऐसा करते होंगे, इसलिए फ़ेसबुक से जुड़ी हालिया घटना और उसके संभावित नतीजे के बारे में आपको ज़रूर ख़बर होनी चाहिए. दरअसल, फ़ेसबुक से जुड़ी एक ख़बर ने दुनिया के होश उड़ा दिए हैं. सुनने में ये कहानी बड़ी जटिल है. लेकिन जितनी जटिल है, उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल सामने ला सकती है.
फ़ेसबुक फंसा कैसे?
रिसर्च फ़र्म कैम्ब्रिज एनालिटिका पर आरोप लगा है कि उसने 5 करोड़ फ़ेसबुक यूज़र से जुड़ी जानकारी का ग़लत इस्तेमाल किया है. ये बहस एक बार फिर शुरू हो गई है कि सोशल नेटवर्क पर लोगों से जुड़ी जानकारी कैसे और किसके साथ साझा की जाती है. आप जानते हैं फ़ेसबुक आपको कैसे ‘बेच’ रहा है!फ़ेसबुक पर अपना डेटा कैसे सुरक्षित रखें? और फ़ेसबुक के लिए ये सारी जानकारी या कहें डेटा, कमाई का मुख्य स्रोत है क्योंकि यही विज्ञापन देने वाली कंपनियों को उसके पास खींच लाती हैं और उसे कमाई कराती हैं. लेकिन कैम्ब्रिज एनालिटिका से जुड़ी घटना ने फ़ेसबुक को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इतने कि सोशल मीडिया में फ़ेसबुक डिलीट करने से जुड़ा हैशटैग #deletefacebook भी वायरल बना दिया है.
फ़ेसबुक डिलीट करने की सलाह
वॉट्सऐप के को-फ़ाउंडर ब्रायन एक्टन ने टि्वटर पर ये सलाह दी है. फ़ेसबुक ने कुछ साल पहले 16 अरब डॉलर या 1 लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा में वॉट्सऐप ख़रीदा था. ये बात तो हुई ख़ुद फ़ेसबुक डिलीट करने की सलाह की, लेकिन क्या साल 2017 की अंतिम तिमाही में 2.2 अरब मासिक एक्टिव यूज़र रखने वाला फ़ेसबुक बंद भी हो सकता है? और अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा? समाज में इसकी वजह से कितना बड़ा बदलाव आएगा? डेटा चोरी की ख़बरों पर फ़ेसबुक के शेयर लुढ़के क्या ट्रंप ने फ़ेसबुक के दम पर जीता था राष्ट्रपति चुनाव? फ़ेसबुक के आकार को देखकर आज ऐसा लग सकता है कि ये मुमकिन नहीं है. लेकिन टेक्नोलॉजी की दुनिया में चीज़ें इतनी तेज़ी से बदलती हैं कि आज नामुमकिन-सी लगने वाली बात कल को सामान्य लग सकती है. सीएनएन के मुताबिक ज़्यादा दिन नहीं बीते जब चुनिंदा इंटरनेट कंपनियों ने मिलकर पूरी दुनिया बदल दी थी. फ़ेसबुक ने पारंपरिक मीडिया को बदलकर रख दिया. उबर, नेटफ़्लिक्स और एयरबीएनबी जैसी चीज़ों ने टैक्सी, मूवी थियेटर और होटलों की जगह ले ली है.
ब्लॉकचेन से फ़ायदा क्या?
ब्लॉकचेन होने से कई लोग रिकॉर्ड इंफॉर्मेशन में कई सारी एंट्री डाल सकते हैं और यूज़र मिलकर (कम्युनिटी) इस बात का कंट्रोल अपने हाथ में रख सकते हैं कि इस रिकॉर्ड को कैसे इस्तेमाल करना है, बदलाव और अपडेट कैसे करना है.
कॉइनडेस्क के अनुसार इसे सबसे आसान तरीके से समझने के लिए विकीपीडिया का उदाहरण है. इस वेबसाइट पर कोई भी एक पब्लिशर मौजूद जानकारी पर अधिकार नहीं रखता.
हालांकि, ये दोनों ही डिस्ट्रीब्यूटेड नेटवर्क पर चलते हैं, लेकिन विकीपीडिया वर्ल्ड वाइड वेब पर बिल्ट किया गया है जिसमें क्लाइंट-सर्वर नेटवर्क मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है.
एकाउंट से ज़रिए मिलने वाली परमिशन के साथ कोई क्लाइंट या यूज़र सेंट्रलाइज़्ड सर्वर पर रखी विकीपीडिया की जानकारी बदल सकता है.
कैसे काम करती है ये टेक्नोलॉजी?
कंट्रोल में अपडेट, एक्सेस और साइबर हमलों से बचने के तौर-तरीके भी शामिल हैं. लेकिन ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में बुनियादी रूप से अलग डिजिटल आधार होता है. ये इस टेक्नोलॉजी का सबसे ख़ास और अलग फ़ीचर भी है. विकीपीडिया की मास्टर कॉपी सर्वर पर एडिट होती है और सभी यूज़र को नया वर्ज़न दिखता है. ब्लॉकचेन के मामले में नेटवर्क में मौजूद हर नोड एक ही निष्कर्ष तक पहुंचता है और उनमें से हरेक स्वतंत्र रूप से रिकॉर्ड को अपडेट करते हैं. इसके बात जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रिकॉर्ड होता है, वो मास्टर कॉपी की जगह आधिकारिक रिकॉर्ड माना जाता है. लेकिन फ़ेसबुक के बदलने या ऐसा कोई नया विकल्प आने में अभी वक़्त है.