हनुमान जी ने माता सीता से क्यों कहा “मेरी धृष्टता को क्षमा करें”


हनुमान जी ने बड़ी विनम्रता से कहा, ”प्रभु! माता सीता जी शायद भूल गई हैं। अशोक वाटिका में तो मैं भी गया था वहां की सारी वाटिका को मैंने सूक्ष्मता से देखा लेकिन वहां मैंने एक भी सफेद रंग का फूल नहीं देखा। सब फूल लाल रंग के थे।”

माता सीता मेरी धृष्टता को क्षमा करें। मातासीता और हनुमान जी दोनों के कथन परस्पर विरोधाभासी थे। अपने कथन का दोनों ने पुरजोर समर्थन किया। इससे एक विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। दोनों ही प्रत्यक्ष दृष्टा थे किंतु दोनों का कथन एक-दूसरे के विपरीत था। स्थिति को नियंत्रित करने की दृष्टि से आखिर श्रीराम ने ही उसका समाधान दिया। उन्होंने कहा, ”दोनों का ही कथन सत्य है।”

राम-रावण युद्ध के बाद एक दिन सभी श्रीराम के सम्मुख बैठे। इस बैठक में युद्ध एवं इससे जुड़ी घटनाओं पर चर्चा हो रही थी। एकाएक श्रीराम ने पूछा कि लंका की जिस वाटिका में सीता को रखा गया था उसमें सबसे ज्यादा किस रंग के फूल थे। सीता ने कहा, ”मैं अशोक वाटिका में एक माह तक रही और मैंने देखा वहां के सारे फूल सफेद रंग के थे।”
बैठक में श्रीराम के कथन ने रहस्य को और गहरा कर दिया। सबकी दृष्टि श्रीराम की ओर गई जैसे सब एक साथ पूछ रहे हों, ”प्रभु! दोनों सही कैसे हो सकते हैं।” श्रीराम ने कहा, ”सीता उस समय शांतचित थीं।

अधिकांश समय वे ध्यान में मग्न रहती थीं। इसलिए पुष्प ही क्या वहां की हर चीज उन्हें सफ़ेद दिखाई दे रही थी। किंतु हनुमान उस समय सीता की व्यथा व रावण के अन्याय को याद कर क्रोधित हो रहे थे। उनकी आंखों में लाल डोरे पड़ रहे थे। इसलिए उन्हें अशोक वाटिका ही क्या पूरी लंकापुरी लाल रंग की दिखाई दे रही थी।” किसी ने सत्य ही कहा है कि जैसी दृष्टि-वैसी सृष्टि।