

पूरी दुनिया में मशहूर है परिजात वृक्ष अपनी कई विशेषताओं के लिए . कहा जाता है की खुद श्री कृष्ण ने लगाया था पारिजात वृक्ष को. यह पेड़ चुटकियों में लोगों की थकावट को मिटा देता है. इसके नीचे बैठने से ही मन प्रसन्न हो उठता है.
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास किंटूर में इस पेड़ को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. लेकिन क्या आपको पता है की इस पेड़ के पीछे क्या कहानी है. आखिर कैसे स्वर्ग का यह पेड़ धरती पर आया. चलिए जानने की कोशिश करें.
द्वापर युग में जब देवर्षि नारदमुनि श्री कृष्ण से मिलने आए तो उन्होंने श्री कृष्ण को अपने साथ लाए परिजात फूल भेंट किए. श्री कृष्ण ने ये फूल अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिया . जब श्री कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा को ये बात मालूम पड़ी तो उन्हें श्री कृष्ण पर बहुत क्रोध आया. उन्होंने श्री कृष्ण से कहा कि उन्हें भी स्वर्ग से आए परिजात के फूल चाहिए. कृष्ण के लाख समझाने के बाद भी सत्यभामा ने अपना हट नहीं छोड़ा.
हारकर श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग भेजा लेकिन इंद्रदेव ने फूल देने से इनकार कर दिया. यह बात जानकर श्री कृष्ण ने इंद्र पर हमला करने का सोचा . श्री कृष्ण ने इंद्र को हरा दिया और पारिजात वृक्ष को जीत लिया. इससे क्रोधित इंद्र ने अभिशाप किया कि अब से इस परिजात वृक्ष पर कभी भी फल नहीं लगेंगे.
श्री कृष्ण ने स्वर्ग से लाये उस पेड़ को सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया पर उन्हें सबक सिखाने के लिए श्री कृष्ण ने एक काम किया. बताया ऐसा जाता है कि श्री कृष्ण ने इस प्रकार पेड़ को लगाया की जब भी परिजात वृक्ष पर फूल खिलते , वह गिरते सिर्फ रुक्मणी की वाटिका में. शायद इसीलिए परिजात वृक्ष के फूल पेड़ से कुछ दूरी पर गिरते हैं.