

कर्नाटक के कई हिस्सों का 10 दिन तक दौरा करने के बाद एक नतीजा निकाला जा सकता है कि हाल में हुए तमाम चुनावों के बाद पहली बार यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मजबूत क्षेत्रीय चुनौती मौजूद है.
कर्नाटक में 222 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को वोट डाले जाएंगे और चुनाव नतीजों का एलान 15 मई को होगा. कर्नाटक में कुल 224 सीटें हैं लेकिन दो सीटों पर बाद में वोटिंग होगी.
डी देवराज उर्स के बाद सिद्धारमैया कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री हैं जो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं, दक्षिण की राजनीति पर उनकी मजबूत पकड़ है.
हम उत्तर प्रदेश और बिहार के राजनीतिक चश्मे से दक्षिण भारत की राजनीति को नहीं देख सकते.
सिद्धारमैया की राजनीति
हालांकि इसमें कोई शक़ नहीं कि यहां भी जाति एक बड़ा मुद्दा है और सभी दलों ने तमाम जातिगत समीकरण अपनी तरफ करने की पुरजोर कोशिशें की हैं.
लेकिन डी देवराज और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन की तरह सिद्धारमैया भी ये समझने में कामयाब रहे कि सामाजिक कल्याण के काम, दबे-कुचले वर्ग को ऊपर उठाना ही बेहतर सरकार चलाने की कुंजी है.
सिद्धारमैया का नाता जनता दल (सेक्युलर) से उस समय टूटा जब पार्टी के मुखिया एच डी देवेगौड़ा ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया, वहां से निकलकर सिद्धारमैया कांग्रेस में शामिल हो गए और उसके बाद वे पूरी तरह कांग्रेसी हो गए.
उन्होंने कभी कोई दरबार नहीं लगाया, न ही दिल्ली में मौजूद नेताओं को नाराज़ कर राज्य के बड़े नेताओं के सामने कभी झुके.
इसके बदले उन्होंने ‘भाग्य’ योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. जैसे ‘अन्न भाग्य’ योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों को हर महीने सात किलो चावल, एक किलो दाल, खाना बनाने वाला तेल और आयोडीनयुक्त नमक कम दरों पर दिया गया, जिसका फायदा चार करोड़ लोगों को मिला.