युग दृष्टा ब्रह्मांड के देवता संत शिरोमणी आचार्य भगवन विद्यासागर महामुनिराज की माघ शुक्ल अष्टमी शनिवार 17 फरवरी को रात्रि में 2.35 बजे समाधि हो गई। आचार्य श्री के ब्रह्म में लीन होने की जानकारी मिलते ही देश विदेश के समग्र जैन समाज में शोक की लहर फैल गई।
राजस्थान जैन सभा जयपुर के मंत्री विनोद जैन कोटखावदा ने बताया कि आचार्य श्री ने विधिवत सल्लेखना पूर्वक 3 दिन का उपवास ग्रहण कर अखण्ड मौन धारण कर लिया था। पूर्ण जागृत अवस्था में आचार्य पद त्याग कर प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण समय सागर महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा कर दी थी। आहार व संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था। संघ को प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बन्द कर दिया था।
श्री जैन के मुताबिक रविवार को दोपहर 1.00 बजे चन्द्रगिरी तीर्थ पर डोला (अंतिम यात्रा) निकाला गया । तथा लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में समाधि स्थल पर विधि विधान के साथ पंचतत्व में विलीन किया गया । इस मौके पर आर के मार्बल्स किशनगढ़ के अशोक पाटनी सहित देश के गणमान्य श्रेष्ठीजन बडी संख्या में शामिल हुए ।
आचार्य श्री की समाधि पर जयपुर की कई संस्थाओं के पदाधिकारियों ने नम आंखों से विनयांजलि एवं श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शोक व्यक्त किया। राजस्थान जैन सभा जयपुर के अध्यक्ष सुभाष चन्द जैन, महामंत्री मनीष बैद,राजस्थान जैन सभा के मंत्री एवं राजस्थान जैन युवा महासभा जयपुर के प्रदेश महामंत्री विनोद जैन कोटखावदा,प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप जैन, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के अध्यक्ष एडवोकेट सुधान्शु कासलीवाल, श्री महावीर दिगम्बर जैन शिक्षा परिषद जयपुर के अध्यक्ष उमराव मल संघी, श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर के कार्याध्यक्ष प्रमोद पहाडियाँ, डॉ शीला जैन, अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के मानद् मंत्री एडवोकेट हेमंत सोगानी, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अंचल अध्यक्ष राज कुमार कोठयारी, पदम बिलाला, कमल बाबू जैन, महेश काला, सुनील बख्शी, अशोक जैन नेता,भारत भूषण जैन, चेतन जैन निमोडिया, कमल वैद आदि ने आचार्य श्री के निधन को सम्पूर्ण विश्व के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि अध्यात्म युग का अन्त हो गया है। जिन शासन के सूर्य का अन्त हो गया है। आचार्य श्री की समाधि से जैन धर्म में सूनापन आ गया है।
विनोद जैन कोटखावदा ने बताया कि आचार्य श्री देश को सोने की चिड़िया बनाना चाहते थे। वे जीवन भर सूती वस्त्र हाथकरघा, बेटी बचाओ बेटी पढाओ, इण्डिया नहीं भारत, हिन्दी भाषा का विकास एवं गौ वंश का संरक्षण एवं गौशालाओं की स्थापना पर जोर देते रहे।
विनोद जैन कोटखावदा ने बताया कि आचार्य श्री का जन्म शरद पूर्णिमा 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के जिला बेलगांव के सदलगा ग्राम में हुआ था। उनका बचपन का नाम विद्याधर था। उनके पिता मलप्पा जैन (अष्टगे ) तथा माता श्रीमन्ति थी। उन्होंने लौकिक शिक्षा 9 वीं कक्षा तक कन्नड माध्यम से प्राप्त की थी। उन्होंने 27 जुलाई 1966 को गृह त्याग दिया था।
वे हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में पारंगत थे।
उन्होंने 323 से अधिक दीक्षाऐं प्रदान की।