क्या आपको मालूम है कि दुनिया की सबसे प्राचीन विश्व विद्यालयों में एक तक्षशिला को किसने बनवाया था. ये कितना बड़ा शिक्षा संस्थान था. इसमें दुनियाभर में कहां-  कहां से स्कालर पढ़ने और शोध करने आते थे. कुछ साल पहले पाकिस्तान ने इसे लेकर एक अजीबोगरीब बयान देते हुए इस पर खुद का दावा किया था. हालांकि ये बात सही है कि ये विश्वविद्यालय विशुद्ध तौर पर भारतीय संस्कृति का ही प्रतिनिधित्व करता था लेकिन ये हकीकत है कि ये भारत में नहीं बल्कि अब पाकिस्तान में है.

दुनिया की सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी में से एक तक्षशिला को लेकर पाक डिप्लोमेट खोखर ने करीब तीन साल पहले वियतनाम यात्रा में कहा था कि ये यूनिवर्सिटी आज से 2700 साल पहले इस्लामाबाद में थी. इस तरह ये प्राचीन पाकिस्तान की धरोहर है. यहां तक कि पाणिनी और चाणक्य जैसे विद्वानों को भी राजदूत ने अपने देश का बता दिया. बाद में उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया गया. खैर वो बात तो बीती हो चुकी है लेकिन असल में ये जानना चाहिए कि इस प्राचीन और विशाल यूनिवर्सिटी की योजना कैसे बनी. कैसे बनाई गई. फिर कैसे ये खत्म हो गई…और अब पाकिस्तान में कैसे है.

तक्षशिला विश्वविद्यालय को दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है. ये तक्षशिला शहर में था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था.

पाकिस्तान में फिलहाल कहां है
माना जाता है विश्वविद्यालय छठवीं से सातवीं ईसा पूर्व में तैयार हुआ था. इसके बाद से यहां भारत समेत एशियाभर से विद्वान पढ़ने के लिए आने लगे. इनमें चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबीलोनिया भी शामिल हैं. फिलहाल ये पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है और इस्लामाबाद से लगभग 35 किलोमीटर दूर है.

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यहां छात्र वेद, गणित, व्याकरण और कई विषयों की शिक्षा लेते थे- सांकेतिक फोटो

भरत ने रखी थी इसकी नींव
वैसे इस विश्वविद्यालय का जिक्र माइथोलॉजी में भी मिलता है. कहा जाता है कि इसकी नींव श्रीराम के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर रखी थी. बाद के समय में यहां कई सारे नई-पुराने राजाओं का शासक रहा. इसे गांधार नरेश का राजकीय संरक्षण मिला हुआ था और राजाओं के अलावा आम लोग भी यहां पढ़ने आते रहे. वैसे ये गुरुकुल की शक्ल में था, जहां पढ़ने वाले नियमित वेतनभोगी शिक्षक नहीं, बल्कि वहीं आवास करते और शिष्य बनाते थे.

पहली बार साल 1863 में जमीन के नीचे दबे इस महान विश्वविद्यालय के अवशेष मिले. इसके बाद से इस जगह की भव्यता के बारे में कई बातें सामने आ चुकी हैं.

सोचने की बात है कि जिसे दुनिया की सबसे पहली यूनिवर्सिटी कहते हैं, वो आखिर कैसे खत्म हो गयी. लेकिन इससे पहले थोड़ा वहां की समृद्धि के बारे में जानते हैं. ये पूरी तरह से विकसित शहर था, जहां पक्के मकान, पानी के निकासी की व्यवस्था, बाजार और मठ, मंदिर थे. ये व्यापार का भी बड़ा केंद्र था और मसालों, मोतियों, चंदन, रेशम जैसी चीजों का व्यापार हुआ करता.

अब विश्वविद्यालय की बात करें तो यहां छात्र वेद, गणित, व्याकरण और कई विषयों की शिक्षा लेते थे. माना जाता है कि यहां पर लगभग 64 विषय पढ़ाए जाते हैं, जिनमें राजनीति, समाज विज्ञान और यहां तक कि राज धर्म भी शामिल था. साथ ही युद्ध से लेकर अलग-अलग कलाओं की शिक्षा मिलती. ज्योतिष विज्ञान यहां काफी बड़ा विषय था. इसके अलावा अलग-अलग रुचियां लेकर आए छात्रों को उनके मुताबिक विषय भी पढ़ाए जाते थे.

विज्ञान से लेकर धर्म तक की पढ़ाई
यहां केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं दी जाती थी बल्कि भाषाओं, कानून, ज्योतिष, खगोलशास्त्र और तार्किकता जैसे बातों की पढ़ाई होती थी. साथ में ये विश्व विद्यालय अपनी विज्ञान, चिकित्सा और कलाओं की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था. मार्शल के अनुसार, शुरुआती बौद्ध साहित्य खासकर जातकों में इसका उल्लेख हुआ है, इसे ऐसा विश्वविद्यालय बताया जो वेदों से लेकर गणित और चिकित्सा तक हर विषय की पढ़ाई और शोध का केंद्र था. यहां तीरंदाजी भी सिखाई जाती थी. मौर्या साम्राज्य में ये ज्ञान के और बड़े केंद्र के तौर पर उभरा और साथ में मजबूत हुआ.

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अनेको आक्रमणों से ये भव्य विश्वविद्यालय खत्म हो गया- सांकेतिक फोटो

कई आक्रमण इस पर हुए, जिससे ये खत्म हुआ
बाद में अनेक आक्रमणों से ये भव्य विश्वविद्यालय खत्म हो गया. इसका पता 1863 में लगा, जब पुरातात्विक खुदाई के दौरान जनरल कनिंघम को यहां के अवशेष मिले. इससे शहर के अलग-अलग पहलू खुलते गए.

बता दें 5वीं ईस्वीं में चीन से बौद्ध भिक्षु फाहियान यहां आए थे. उन्होंने शहर के साथ विश्वविद्यालय को अपने पूरे वैभव में देखा. हालांकि 7वीं ईस्वीं में चीन के एक अन्य भिक्षु श्यानजांग को शहर में वीरानी और मलबा ही दिखा. इस बीच क्या हुआ, इसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं.

तक्षशिला विश्व विद्यालय के अवशेष, अब ये इस स्थिति में है. ये यूनेस्को की धरोहर सूची में है. दुनियाभर से लोग इसको देखते आते हैं.

खानाबदोश जातियों के आक्रमण से नष्ट हुआ 
एक के बाद एक कई आक्रांताओं ने शहर को पूरी तरह से खत्म कर दिया. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मध्य-एशियाई खानाबदोश जनजातियों ने यहां आक्रमण करके शहर को खत्म कर डाला. इस कड़ी में शक और हूण का जिक्र आता है.

हालांकि बहुत से इतिहासकार कुछ और ही बताते हैं. उनके मुताबिक शक और हूण ने भारत पर आक्रमण को किया था लेकिन उसे लूटा था, नष्ट नहीं किया था. उनके मुताबिक अरब आक्रांताओं ज्ञान के इस शहर को पूरी तरह से खत्म कर दिया ताकि इससे विद्वान न निकल सकें. छठवीं सदी में यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू किए और बड़ी संख्या में तबाही मची. आज भी यहां पर तोड़ी हुई मूर्तियों और बौद्ध प्रतिमाओं के अवशेष मिलते हैं.

भौगोलिक स्थिति इसे खास बनाती थी
तक्षशिला विश्व विद्यालय सिंधू नदी के किनारे बनाया गया था. जहां धाार्मक और सेकुलर विषयों की पढ़ाई होती थी. शुरुआत में इसकी शुरुआत ब्राह्मण शिक्षा के केंद्र के तौर पर हुई लेकिन फिर ये साथ में बौद्ध शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बन गया. एशिया में प्राचीन भारत के रास्ते जो व्यापार होता था, तक्षशिला उसके रास्ते पर था. अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते ये बड़े शिक्षा केंद्र के तौर पर उभरा.
ऐतिहासिक रूप से यह तीन महान मार्गों के संगम पर स्थित था –
1. उत्तरापथ – मौजूदा ग्रैंड ट्रंक रोड, जो गंधार को मगध से जोड़ता था.
2. उत्तरपश्चिमी मार्ग – जो कापिश और पुष्कलावती आदि से होकर जाता था.
3. सिन्धु नदी मार्ग – श्रीनगर, मानसेरा, हरिपुर घाटी से होते हुए उत्तर में रेशम मार्ग और दक्षिण में हिन्द महासागर तक जाता था.

यूनेस्को धरोहरों में
यह स्थल 1980 से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में सम्मिलित है. वर्ष 2010 की एक रिपोर्ट में विश्व विरासत फंड ने इसे उन 12 स्थलों में शामिल किया, जो अपूरणीय क्षति होने के कगार पर हैं. रिपोर्ट में इसके प्रमुख कारण अपर्याप्त प्रबंधन, विकास का दबाव, लूट, युद्ध और संघर्ष आदि बताये गए.

पाकिस्तान में अब ये इसलिए है क्योंकि 1947 के बाद जिस जगह ये स्थित था, वो पूरा इलाका भौगोलिक तौर पर पाकिस्तान के पास चला गया. इसलिए अब ये वहां की मिल्कियत में शामिल हो गया है. हालांकि हमारे देश में ज्यादातर लोगों को ये लगता है कि तक्षशिला बिहार में ही कहीं है.