बीकानेर के रेगिस्तानी इलाकों में इन दिनों तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच गया है. वहीं खुले इलाकों में यह तापमान 45 डिग्री तक पहुंच गया है. तापमान बढ़ने से गर्मी का असर इंसान ही नहीं पशु पक्षियों पर भी पड़ता है. गर्मी में सबसे ज्यादा पानी की किल्लत रहती है. इंसान तो जैसे तैसे पानी के लिए जुगाड कर लेते है, लेकिन पशु पक्षी पानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं और कई बार तो पशु पक्षी पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर भी करते हैं.

ऐसे में बीकानेर के गंगाशहर से सटी 11 हजार बीघा में फैली गोचर भूमि में हजारों जीव-जंतुओं के पानी के लिए महिलाओं ने समुचित व्यवस्था के लिए खुद ही तपती धूप में सिर पर घड़ा रखकर घरों से पानी भरकर ले जाती है और कई किलोमीटर पैदल चलकर पशु पक्षियों को पानी पिलाते है.

20 से 30 सालों से महिलाएं पशु-पक्षियों को पिला रहीं पानी
ऐसे में बीकानेर की महिलाएं पर्यावरण संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर कर रहे है. यह महिलाएं पिछले 20 से 30 सालों से पशु पक्षियों के लिए पानी लेकर जाती है. सालों से चली आ रही परम्परा के तहत सास से बहू और मां से बेटी तक इस परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं. निवासी रंभा देवी ने बताया कि वे 10 से 11 सालों से गोचर में पशु पक्षियों के लिए पानी डालने के लिए आते है.

ज्यादातर अमरपुरा भीनासर की 70 से ज्यादा महिलाएं पानी डालने के लिए आती है. यहां पशु पक्षियों के लिए कई खेली बनाई गई है जहां सभी महिलाएं अपने घर से पानी लेकर आती है और इस खेली में पानी डालती है. यहां सभी महिलाएं करीब पांच माह तक लगातार दोपहर और शाम को खेलियों में पानी डालने जाती है. वे रोजाना डेढ़ से दो घंटे तक यहां गोचर में खेलियों में पानी भरने और भजन गाती है.

गंगाशहर, भीनासर सहित आस-पास के क्षेत्र में रहने वाले परिवारों की ये महिलाएं रोजाना शाम चार बजे से समूहों में घरों से पानी से भरी मटकी सिर पर रखकर गोचर भूमि की ओर चल देती हैं. जंगल में कई किलोमीटर अंदर जाकर वहां पशुओं के लिए बनी खेळियों और पक्षियों के लिए रखे पाळसियों में पानी डालती है. प्रचार से दूर पीढिय़ों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह कर रही है. लंबे चौड़े रेतीले भू-भाग में फैले इस जंगल में हजारों जीव-जंतुओं और पशु-पक्षियों के लिए गर्मी में पीने के पानी की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है.

सिर पर मटकी और जुबां पर पर्यावरण संरक्षण का गीत
आबादी क्षेत्र गोचर से सटा होने से क्षेत्रवासियों का जीव-जंतुओं से नजदीक का नाता है. दर्जनों महिलाओं के दिन की शुरुआत पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए गोचर में पानी पहुंचाने से होती है. सुबह और शाम ढलने पर महिलाओं के समूह सिर पर पानी की मटकियों से गोचर में बनी खेळियों में पानी डालती है. उम्रदराज महिलाएं मटकी सिर पर रखकर ज्यादा आगे नहीं जा पाती तो वे आगे जाने वाली महिलाओं का उत्साहवद्र्धन करती हैं. उनके लौटकर आने तक वहीं मंडली बनाकर बैठ जाती हैं और पर्यावरण संरक्षण के पारंपरिक गीत गाती हैं.

पानी डालने के बाद वापसी में महिलाएं समूह बनाकर गीत गाती हैं, जिसमें पर्यावरण संरक्षण और पशु-पक्षियों के प्रति उनका स्नेह झलकता है. ‘भाग बड़ो घर आई म्हारी तुलछां, आंगणिये में तुलछा, मंदिर में तुलछां, ‘म्हारो अगलो जन्म सुधारो, पहाड़ां रा बद्रीनाथ, पहाड़ चढऩता म्हारा गोडा दुखे लकड़ ले लो साथ, सोच रही मन म, समझ रही मन म थारो म्हारो न्याव होवे ला सत्संग मं’ आदि गीत गाकर महिलाएं भगवान को रिझाने का भी प्रयास करती हैं.