राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र में आज  अमेरिका के नॉर्थ अमेरिकन कैमल रांच ऑनर्स एसोसिएशन के सात सदस्‍यीय दल ने भ्रमण कर केन्‍द्र की उष्‍ट्र से जुड़ी अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया। इस दौरान केन्‍द्र के निदेशक डॉ साहू के नेतृत्‍व में वैज्ञानिकों द्वारा इस दल को ऊँटों प्रजाति हेतु किए जा रहे वैज्ञानिक कार्यों एवं व्‍यावहारिक प्रयासों के सम्बन्ध में बात की तथा एनआरसीसी द्वारा मधुमेह व ऑटिज्म बीमारियों के प्रबंधन की दिशा में ऊँटनी के दूध पर हुए अनुसन्धान कार्यों में गहरी रूचि दिखाते हुए इनकी सराहना की।
दल के साथ पारस्‍परिक परिचर्चा में डॉ. आर्तबन्‍धु साहू ने एनआरसीसी के अनुसंधान एवं विकास कार्यों एवं प्राप्‍त उपलब्धियों के बारे में कहा कि ऊँट के विभिन्‍न पहलुओं यथा-जनन, प्रजनन, आनुवंशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य आदि पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है साथ ही परिवर्तित परिदृश्‍य में ऊँटनी के दूध की औषधीय उपादेयता को उजागर किया जा रहा है ताकि इस प्रजाति के संरक्षण के अलावा ऊँट पालन व्‍यवसाय को लाभकारी बनाया जा सकें।
अमेरिका से आए इस दल की सचिव वालेरी क्रिमशो ने एनआरसीसी द्वारा ऊँट प्रजाति के कल्‍याणार्थ किए जा रहे उल्‍लेखनीय अनुसंधान कार्यों, ऊँटों के स्‍वास्‍थ्‍य एवं इनके प्रबंधन एवं उष्‍ट्र- पर्यटनीय पहलुओं से जुड़े समग्र विकास कार्यों की प्रशंसा करते हुए अनूठी प्रजाति हेतु ऐसे प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया ।
दल के अध्‍यक्ष डगलस ने बताया कि उनका समूह अमेरिका एवं भारत के ऊँटों की विविधता का अनुभव करना चाहता है, यहां एक कूबड़ीय ऊँटों पर अनुसंधान, उनकी नस्‍लों, प्रजनन, ऊँटों का पारंपरिक उपयोग तथा उनकी स्‍वभावगत आदतों  का पता लगाने आया है। दल में शामिल वेटरनरी चिकित्‍सक डॉ.किल्‍ली ने ऊँटों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान दल ने ऊँटनी के दूध से बनी “छाछ’ तथा बीकानेरी मिठाई ‘रसगुल्‍ला का स्वाद लिया साथ ही उष्‍ट्र संग्रहालय, उष्‍ट्र बाड़ों, उष्‍ट्र डेयरी आदि पर्यटनीय स्‍थलों का भ्रमण करवाया गया।