गौचर औरण संरक्षक संघ राजस्थान के बैनर तले सोमवार को जैसलमेर में औरण और पारिस्थितिकी तन्त्र की भूमि को डीम्ड फारेस्ट घोषित किए जाने का विरोध आपत्ति दर्ज कराने के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्री, प्रधान मुख्य वन संरक्षक को तहसीलदार के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित किया गया। इस अवसर पर गौचर औरण संरक्षक संघ राजस्थान के प्रदेश उपाध्यक्ष हाथी सिंह मुलाना ने कहा कि औरण एवं अन्य पारिस्थितिक तंत्र की भूमि से आमजन की भावनायें जुड़ी हुई हैं। साधारणतया औरण भूमि देवभूमि है, जो हमारे पुरखों ने राजस्थान की मरूभूमि के रेगिस्तानी स्वभाव को देखते हुए देवताओं के नाम पर छोडी थी। इन औरण भूमि में हरे पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध था और इस भूमि में केवल गांव के पशु अपनी चराई करते थे। अब सरकार डीम्ड फॉरेस्ट के नाम से इन ज़मीनों को दर्ज करवाना चाहती है। जिसको लेकर तहसीलदार के माध्यम से सरकार और वन विभाग को आपत्ति दर्ज करवाई गई है ताकि इसे ओरण के नाम से ही रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। इस अवसर पर पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता ने कहा कि औरण पुरखों द्वारा देवताओं के नाम पर छोड़ी गई चारागाह भूमि है। पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश ग्रामीणों का रोजगार पशुपालन है। यहां लोग बडे बडे रेवड यानि भेड बकरियों के झुण्ड, रखते हैं और इनको चराने के लिये ये औरण ही एकमात्र साधन होता है। यदि औरण भूमि को डीम्ड फॉरेस्ट घोषित किया जाएगा तो ग्रामीणों को अपने पशुओं को चराना असंभव होगा। पशुपालकों की आजीविका रुक जाएगी। क्योंकि वनभूमि में वर्तमान नियमों के अनुसार पशुओं की चराई बाधित है। ऐसे में हम वन विभाग की इस विज्ञप्ति का विरोध करते हैं और आपत्ति दर्ज करवाते हैं। इस मौके पर हरि सिंह मंडल अध्यक्ष फतेहगढ़ देरावर सिंह बड़ौदा गांव लीलू सिंह बड़ा दुर्ग सिंह सुजान सिंह सलखा शिवदान सिंह भाटी, मधाराम श्री मोहनगढ़ सहित कई पर्यावरण प्रेमी मौजूद रहे। वही ज्ञापन में बताया की वन विभाग द्वारा प्रकाशित उक्त विज्ञप्ति दिनांक 03.02.2024 तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश जो प्रकरण संख्या 202/1995 आईए संख्या 41723/2022 में औरण और पारिस्थितिक तन्त्र की भूमि को डीम्ड फ़रिस्ट घोषित किया जाना प्रस्तावित है, उसके क्रम में गौचर औरण संरक्षक संघ, राजस्थान निन कारण देते हुए अपनी आपत्ति दर्ज करवा रहा हैं।
संगठन के द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन आपके वन विभाग द्वारा जारी ओरण की सूचना सूची में दर्शाए गए जिले के सभी खसरों में स्थित ओरण भूमि को डीम्ड फॉरेस्ट बनाने की आपत्ति के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।- यह है कि औरण एवं अन्य पारिस्थिक तंत्र की भूमि से आमजन की भावनायें जुडी हुई हैं। साधारणतया औरण भूमि देवभूमि है जो हमारे पुरखों ने राजस्थान की मरूभूमि के रेगिस्तानी स्वभाव को देखते हुए देवताओं के नाम पर छोडी थी। इन औरण भूमि में हरे वृक्षो की कटाई पर प्रतिबंध था तथा इस भूमि में केवल गांव के पशु अपनी चराई करते थे। यह है कि औरण पुरखों द्वारा देवताओं के नाम पर छोडी गई चारागाह भूमि है। पश्चिमी राजस्थान के ग्राम्य क्षेत्रों में अधिकांश ग्रामीणों का रोजगार पशुपालन है। यहां लोग बडे बडे रेवड यानि भेड बकरियों के झुण्ड, रखते हैं और इनको चराने के लिये ये औरण ही एकमात्र साधन होता है, यदि औरण भूमि को डीम्ड प्ररिस्ट घोषित किया जावेगा तो कामीयों को अपने पशुओं को चराना असंभव होगा, पशुपालकों की आजीविकी अवरुद्ध हो जावेगी क्योंकि वनभूमि में वर्तमान प्रावधानों के अनुसार पशुओं की चराई बाधित है। – यह है कि औरण से स्थानीय निषानी सूची नकदी का जलावन, वृद्धों की पैदावार प्रथा फेर, कुमटिया, सांगरी, गौन्य, सूगत, आदि इक्ट्ठा कर अपनी आजीविका का निर्वहन करते हैं
यह है कि औरण भूमि में अवस्थित मंदिर, देवालय, देवरे, थान और समाधियां आदि हमारी आस्वा के स्थान है तथा सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार वहां पर जात, धोक, अडोले आदि किये जाते हैं। यहां विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजन होते हैं, और इन औरण भूमियों में बडे बडे मेले भरे जाते हैं, देव उत्सव किये जाते हैं, साथ ही विभित्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी इन्ही मंदिरों, देवरों, बानो, तालाबों आदि पर किया जाता रहा है, यदि यह भूमि डीम्ड करिस्ट घोषित होती है तो जन आस्थाओं और इन मेलों-आयोजनों-धार्मिक उत्सवों पर विपरीत प्रभाव पडेगा ,यह है कि गांव के तालाब, पोखर, नाडी आदि भी ओरण भूमि में ही अवस्थित हैं, जिससे न केवल पशु पानी पीते हैं और यहां स्वछंद विचरण करते हैं, अपितु आस पास के ग्रामीण भी अपने पीने के पानी का समाधान यहीं से करते हैं। वन भूमि घोषित होने पर सभी को पीने के पानी की समस्या का सामना करना होगा यह है कि साधारणतया छोटे गांवों में श्मसान हेतु कोई भूमि अलग से चिन्हित नहीं होती है,औरण भूमि में ही दाह संस्कार किये जाते हैं। यह है कि इस औरण भूमि में हमारे मंदिर, देवालय, देवरे, थान और समाधियां बने हुए हैं, जहां पर आस-पास तथा दूरदराज के वृद्वालु जन दर्शन हेतु आते हैं। समय समय पर इन मंदिरों/देवरों/थानों/समाधियों आदि का जीर्णोद्धार भी किया जाना आवश्यक होता है, अतः वनभूमि घोषित होने पर न केवल हमारी आस्था पर चोट पहुंचेगी, अपितु श्रद्धालुओं के निर्वाध आवागमन पर भी रोक लगेगी साथ ही इन तीर्थों के जीर्णोद्धार आदि कार्यों में भी रुकावट आयेगी । यह है कि इन औरण भूमियों में से हमारे आस-पास के विभिन्न गांवों में आने जाने के मार्ग बने हुए हैं, जिनका हम सुगमता से उपयोग करते आ रहे हैं। ये मार्ग कच्चे भी है, ग्रेवल रोड भी बनी हुई है तथा कहीं कहीं डामर सडक भी बनी हुई है। इस तरह से डीम्ड फारेस्ट की भूमि हो जाने पर सहज आवागमन बाधित हो जायेगा।

खींवराजसिंह
जैसलमेर