जिले के राघवा गांव के पास की जमीन को ओरण में शामिल करने के लिए 100 किमी की पदयात्रा बुधवार को जैसलमेर पहुंची। जैसलमेर केलेक्टर ऑफिस के बाहर ग्रामीणो ने उग्र प्रदर्शन किया। इसके बाद ग्रामीणो ने एडीएम को सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन सौंपकर ग्रामीणो ने ओरण की जमीन को रेवेन्यू रेकॉर्ड में दर्ज करवाने की मांग की अन्यथा उग्र आंदोलन की चेतावनी दी।

 

जिले में विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों बीघा जमीनें जिसे कई पीढ़ी पूर्व हमारे पूर्वजों ने देवी देवताओं और जुझारों आदि के नाम पर ओरण (आण) घोषित कर संरक्षित करने के प्रयास किए थे ताकि आने वाली पीढ़ियों को बेहतर पारिस्थितिकी मिले साथ ही पशुओं आदि को विचरण और चारे पानी के लिए खुला स्थान मिल सके। इन ओरणों में आज भी ग्रामीण ना तो कोई पेड़ काटते हैं और ना ही ओरणों की जमीन पर किसी प्रकार की कृषि काश्त करते हैं क्योंकि सदियों से ओरण के प्रति स्थानीय निवासियों की आस्था जुड़ी रहती हैं। मगर वक्त सेटलमेंट के समय कई ओरण राजस्व रिकार्ड में दर्ज होने से वंचित रह गई। इन ओरणों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए स्थानीय जनता ने समय समय पर कई आंदोलन किए जो कि पिछले 15 साल से लगातार जारी हैं।

इसी कड़ी में राघवा ग्राम के कालरा कुआं के पास सैकड़ों बीघा जमीन सदियों पूर्व ओरण के नाम पर छोड़ी गई थी मगर राजस्व रिकार्ड में ओरण दर्ज नहीं हैं। इसी को लेकर राघवा और आस पास के गांवों के ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार को उक्त ओरण को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए कालरा कुआं से जिला मुख्यालय जैसलमेर स्थित कलेक्टर कार्यालय तक की पैदल यात्रा कर ओरण को राजस्व रिकार्ड में दर्ज करने की मांग को लेकर अतरिक्त जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। यह पैदल यात्रा 3 दिन पूर्व प्रारंभ हुई थी जिसमें सैकड़ों ग्रामीणों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

गौरतलब हैं कि पिछले 15 साल से प्रशासनिक हलकों में ये चर्चाएं थी कि ओरनों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं किया जा सकता मगर पिछली सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन विधायक और राजस्व अधिकारियों के साझा प्रयासों से जिले के लगभग 15 ओरण राजस्व रिकार्ड में दर्ज किए जाने से आगे का रास्ता खुल गया। अब राजस्व रिकार्ड में भुमि की किस्म को बदलकर उसे ओरण दर्ज किया जा सकता हैं।

जैसलमेर की स्थानीय ग्रामीण जनता और पशुपालकों को हमेशा यह डर सताता हैं कि सरकार जिले की कोई भी जमीन किसी भी कंपनी को आवंटित कर देगी जिससे जिले में स्थित ओरणें खत्म हो जाएगी साथ ही इससे स्थानीय जनता की आस्था भी खंडित होगी क्योंकि कई ओरणों में स्थानीय देवी देवताओं और जुझारों के मंदिर, कुएं और देवलियां आदि बनी हुई हैं जिन्हे आज भी लोग पूजते हैं। मगर यदि किसी कंपनी को ये आवंटित ही गए तो कंपनियां लोगों को उक्त स्थानों पर घुसने ही नहीं देगी जैसा कि पारेवर में हो रहा हैं। इसलिए स्थानीय लोगों ने वर्तमान सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हमारी ओरणों की तरफ किसी भी प्रकार की कुदृष्टि नहीं डाले अन्यथा बहुत बड़ा आंदोलन होगा जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी क्योंकि स्थानीय जन इन ओरणों की सुरक्षा के लिए अपना सिर कटा सकती हैं मगर ओरणों में किसी कंपनी को नहीं घुसने देंगे। गौरतलब है कि राघवा गांव के मिठड़ाऊ कुंआ, कालरा कुंआ व जुनिया कुंआ पर भुराबाबा, सिद्ध हनवंतसिंह, जुझार श्यामसिंह, वीर सिद्धराव मायथीजी, खेजड़ वाली माता व जुझार कुंपसिंह की प्राचीन सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं से छोड़ी गई ओरण भूमि व मुंहबोली ओरण भूमि है। ग्रामीणों ने बताया कि ये 25 हजार बीघा से भी ज्यादा जमीन है जो राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। सरकार इसको निजी कंपनियों को अलोट नहीं करके ओरण के नाम से ही राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करे।

भाजपा नेता सुनीता भाटी बोली- जमीन दे दो नहीं तो पाकिस्तान भेज दो

 

ओरण यात्रा के समर्थन ने आई भाजपा की वरिष्ठ नेत्री ने बताया कि जैसलमेर की जमीन को सरकार ने फील्ड फायरिंग रेंज, आर्मी, बीएसएफ, एयरफोर्स, विंड – सोलर कंपनियों और सीमेंट कंपनियों को दे दी तो ऐसे में जैसलमेर की जनता कहां जाए? क्या यहां के लोग पाकिस्तान चले जाए? ओरण गोचर पे सबसे पहला हक वहां की स्थानीय जनता का होता है। साथ ही उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी होती हैं। सरकारों ने पाक विस्थापितों को तो जमीनें दे दी मगर यहां के भुमि हीन बाशिंदों को खेती के लिए जमीनें नहीं दी। वर्तमान सरकार से उम्मीद हैं कि वो ओरणों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर स्थानीय जनता की जनभावनाओं का सम्मान करेगी। जैसलमेर के लोगों को ही जमीन का हक नहीं मिल रहा है। ऐसे में वे खुद विस्थापित हो रहे हैं। अब तो सरकार उनको पाकिस्तान ही भेज दे। सभी किसान और ग्रामीण भूमिहीन है मगर सरकार उनके बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। ऐसे में डीम्ड फॉरेस्ट के नाम पर ओरण को ज़मीनों को भी सरकार हथिया रही है। उन्होने बताया कि ये सरासर गलत है और हम सब इसका पुरोजोर विरोध करते हैं। पदयात्रा के जैसलमेर पहुंचने पर बीजेपी नेता सुनीता भाटी, हाथी सिंह मुलाना, वीरेंद्र सिंह रामगढ़, कांग्रेस नेता लख सिंह चांधन, पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता मौजूद रहे। सभी ने ग्रामीणो की मांगों का समर्थन करते हुए सरकार को इस बारे में विचार करने के लिए कहा है।

इस मौके पर पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता ने बताया कि हम किसी भी हाल में ओरण की ज़मीनों को सरकार के रेवेन्यू रेकॉर्ड में दर्ज करवा कर ही मानेंगे, चाहे इसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। हम अपने देवी देवताओं की ज़मीनों को निजी हाथों में या वन विभाग को नहीं सौंपेंगे।

क्या होती है ओरण

ओरण मरुक्षेत्र की प्राकृतिक, भौगोलिक एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों से सम्बद्ध एक ऐसा लघु वनक्षेत्र है जो मरुस्थलीय क्षेत्रों की विकट स्थिति में भी वहां के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से गांवों के स्वावलंबन एवं आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। सीधे शब्दों में कहे तो गांव के आस-पास एक जमीन को ग्रामीणों द्वारा वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर छोड़ दिया जाता था। उस जमीन पर वनस्पति के भी फलने-फूलने की पूरी व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाता था। पश्चिमी राजस्थान के विशाल थार मरुस्थल क्षेत्र में शताब्दियों से ओरणों के चमत्कार से ही पशुपालन व्यवसाय आधारित अर्थव्यवस्था के बल पर ही यहां के ग्रामीण भीषण अकालों का सहजता से मुकाबला करते रहे हैं।

अभी भी 70-80 ओरण रिकॉर्ड में दर्ज होने से वंचित, डीएनपी की तरह ही सख्त होते हैं ओरण के भी नियम

जैसलमेर में अभी भी 70-80 ओरण है जो रिकॉर्ड में दर्ज होने से वंचित है। हालांकि इसके लिए ग्रामीणों द्वारा अपने स्तर पर प्रयास किए जा रहे है। लेकिन देगराय ओरण के ज्यादा प्रयासों के चलते इसे जल्द ही रिकॉर्ड में शामिल कर लिया गया है। उप शासन सचिव के आदेश के अनुसार 539 हैक्टेयर यानि 6 हजार बीघा को देगराय ओरण में शामिल किया गया।

ओरण के नियम भी डीएनपी की तरह बेहद सख्त होते है। ओरण में किसी भी प्रकार का स्थाई निर्माण कार्य करवाने से पहले वन विभाग से एनओसी लेने की जरूरत रहेगी। वन विभाग द्वारा भी इसकी फाइल केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। जिसके बाद वहां से एनओसी जारी होगी। एनओसी जारी होने के बाद ही किसी भी प्रकार का निर्माण इस ओरण क्षेत्र में हो सकेगा। इस लिहाज से जैसलमेर की ओरण भूमि पर अब वन्यजीव के संरक्षण के भी सख्त नियम लागू हो जाएंगे। इसके अलावा पेड़ों की कटाई पर भी सख्ती रहेगी।

तनेराव सिंह
जैसलमेर